$****** जिंदगी का सफर ******
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* हम जब अपने आशियाँ से , ज़िंदगी के सफर पर निकले न थे ,
सोचते थे कहाँ जायेंगे ? सोचते थे कहाँ सोएंगे ?
सोचते थे क्या बिछायेंगे ? क्या ओढेंगे ?
पर जब ये कदम चले तो रुकने को कोई दर ही न मिला ,
छोटे से आशियाँ से एक बड़े जहाँ में आ गए ,
सपनों की दीवारें , आकाश की छत ,
धरती का बिछौना , सभी कुछ तो अपना है ,
और जब चलते हुए कदम ठहरे तो , होश ही नहीं था कि
कौन सा मुल्क , किस ज़मीं पर हैं ,
बस हारा हुआ मन , घनी रात कि तन्हाई के बिछौने पर ,
आज कि मायूसी कि चादर लपेटे , बेखौफ कल के सपनों में खो गया ,
लहरों से मचलते , मदमस्त ख्वाब , अगले दिन कि हकीकत से ,
फिर एक बार हारने वाले थे , और यही सिलसिला ,
कल से आज तक कि ज़िंदगी बन गया ,
अब सोचते हैं कब सोएंगे ? कब जायेंगे जहाँ से ?
सोचते हैं कि कितना ? कैसे ? और कब तक जियेंगे ?
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