Thursday, June 11, 2009

$****** जिंदगी का सफर ******
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* हम जब अपने आशियाँ से , ज़िंदगी के सफर पर निकले न थे ,
सोचते थे कहाँ जायेंगे ? सोचते थे कहाँ सोएंगे ?
सोचते थे क्या बिछायेंगे ? क्या ओढेंगे ?
पर जब ये कदम चले तो रुकने को कोई दर ही न मिला ,
छोटे से आशियाँ से एक बड़े जहाँ में आ गए ,
सपनों की दीवारें , आकाश की छत ,
धरती का बिछौना , सभी कुछ तो अपना है ,
और जब चलते हुए कदम ठहरे तो , होश ही नहीं था कि
कौन सा मुल्क , किस ज़मीं पर हैं ,
बस हारा हुआ मन , घनी रात कि तन्हाई के बिछौने पर ,
आज कि मायूसी कि चादर लपेटे , बेखौफ कल के सपनों में खो गया ,
लहरों से मचलते , मदमस्त ख्वाब , अगले दिन कि हकीकत से ,
फिर एक बार हारने वाले थे , और यही सिलसिला ,
कल से आज तक कि ज़िंदगी बन गया ,
अब सोचते हैं कब सोएंगे ? कब जायेंगे जहाँ से ?
सोचते हैं कि कितना ? कैसे ? और कब तक जियेंगे ?
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2 comments:

  1. be khauf kal ke sapnon mein kho jaane waale kabhi haara nahi karthe..........sapnon ki deewaarein jiski sarhad hon....aakaash jiska chath hon, aur zameen jiska bisthar...isse dhani insaan se hum kabhi na mile...chalthe chalthe jab kadam yun hi ruk jayein...aur na mulk ka hosh ho na zameen ki pehchaan...samjho aisa insaan kabhi gumshuda nahi ho saktha, kaheen......loved ur poem........

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  2. Sapane hee hain jo aapko hausala dete hain aur fir ek bar uth kade hoen kee himmat. Mayoos na ho, kawi bhee kabhee harate hain kya ?

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