Wednesday, June 10, 2009

$******* अपनी साँसों में ठहरकर देखो*******
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* और कितने पल यूहीं हाथ पर हाथ धरे बैठोगे ।
कभी तो इन टेढी - मेढ़ी राहों पे चलकर देखो ॥ *
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* कब तलक गैरों की तरफ़ उंगलियाँ उठाओगे ।
कभी, किसी पल तो अपने हाथों को भी मलकर देखो ॥ *
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* कब तलक उठी निगाहों से आसमां को कोसोगे ।
कभी तो पैरों तले की ज़मीं पर चलकर देखो ॥ *
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* कब तलक यूहीं चुप चाप अपनी खामोशियों में गूंजोगे ।
कभी, किसी पल तो अपने लबों से निकलकर देखो ॥ *
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* कब तलक अपनी पलकों में अश्कों को छिपाओगे ।
कभी किसी पल तो यूहीं अपनी पलकों से छलककर देखो ॥ *
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* कब तलक भागते रहोगे अपने होने से ।
कभी कभी तो यूहीं अपनी साँसों में ठहरकर देखो ॥ *
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3 comments:

  1. कब तलक गैरों की तरफ़ उंगलियाँ उठाओगे ।
    कभी, किसी पल तो अपने हाथों को भी मलकर देखो ॥
    बहुत सही ।

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  2. * कब तलक उठी निगाहों से आसमां को कोसोगे ।
    कभी तो पैरों तले की ज़मीं पर चलकर देखो ॥ *

    its just majestic... really nice...

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  3. apni saanson mein teherkar dekh jo liya......jaana...... haan jaana...ananth kaheen aur nahi hai...hum me hi hai.........

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