Tuesday, June 9, 2009

$***** कभी " ग़ालिब " की तरह *****
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* साँस से अगली साँस तक , आस से आस तक,
प्यास से नई प्यास तक, विशवास से विशवास तक,
ज़िन्दगी में फिर संघर्ष, फिर नई ज़ंग है ॥ *
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* कदम से अगले कदम तक ,
भरम से अगले भरम तक,
ख्वाहिश से अगली ख्वाहिश तक,
इस रात से अगली सुबह तक ,
ज़िन्दगी एक अनदेखा, अनजाना , असीमित,
संघर्ष है, सिर्फ़ संघर्ष, संघर्ष किस से और क्यूँ ? *
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* पल से पल तक, आज से कल तक ,
कल से अगले कल तक , ख़ुद ही से भागता है इंसान ,
कभी सिकंदर बनकर, औरों की ज़मीनों को रौंदता है,
तो कभी ग़ालिब की तरह, अपने ही मैं को झंझोड़ता है,
कुछ सोचता है, कुछ चाहता है,
सब कुछ खोता है, कुछ पाता है ,
फिर खुदको ही खुदा मानकर,
हमेशा के लिए सो जाता है,
ज़िन्दगी की चाहतों को छोड़ जाता है,
किसी और के जीने के लिए ॥ *
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2 comments:

  1. जिन्दगी की चाहतों को छोड जाता है
    किसी और के जीने के लिये ।
    जिन्दगी के यथार्थ की खूबसूरत अभिव्यक्ती ।

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  2. sangharsh kis se aur kyon.....is sawaal ka jawaab agar humein mil jaatha...toh shayad hum shayar na hote, .....kisi anjaan dagar pe awaara phirthe huey benaam darvesh hote.......be-maqsad...be-mukaam........be-buniyaad......

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